घुटि-घुटि क' दिन राति मरै छी हम
लगन एहन है छै छल नै बुझल
विरह के आगि में आब जरै छी हम
छन भरि के दूरी सहलो नै जाइए
छन-छन घुटि-घुटि क' कनै छी हम
सब त बताह कहैत अछि हमरा
हुनक ध्यान में रमल रहै छी हम
जाहि बाट पर चलि प्रियतम गेला
मनु ओ बाट के निहारि तकै छी हम
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
जगदानन्द झा 'मनु'
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