रविवार, 13 मई 2012

गजल

भूख जाड़ल लोक कोना हँसि सकैए
नोर कानल लोक कोना हँसि सकैए
देखने जे होइ अर्थी अपन लोकक
दर्द जागल लोक कोना हँसि सकैए
लोभ जागल मोह मोहल लोक हँसतै
साँस काटल लोक कोना हँसि सकैए
जहर बनबै जे कहाँ ओ नोर बहबै
जहर चाटल लोक कोना हँसि सकैए
दर्द दै जे छी कने अपने ल' देखू
चोट लागल लोक कोना हँसि सकैए
राखि हमरो नोर अपना आँखि सोचू
"अमित" मारल लोक कोना हँसि सकैए
फाइलातुन
2122 तीन बेर सब पाँति मे
बहरे-रमल
अमित मिश्र

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों