प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल-------------
हियासँ हिया मिलाउ नजरिसँ काज नै चलत
करू जोगार बैठकी केर उठा-उठी राज नै चलत
समय दूनू गोटेक लेल अछि अन्हरिया बला
जँ मोनमे इजोत नै जागत तँ काज नै चलत
समेटि क' अपन बाँहिमे बिहुँसैत रहू अहाँ
केवल जँ मूँह निहारब तैसँ काज नै चलत
अंगिया क' अपन संबंधकेँ पूर्ण विराम दिऔ
सिनेहक बीच कौमा देबै तैसँ काज नै चलत
अहाँ पाबि लिअ पहिने ऐ समाजसँ अधिकार
दूनूक लिव-इन रिलेशनसँ काज नै चलत
आखर-----18
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