गजल
कहय छी लोकक चालि बेकार भेल जाय
कठिन किछु ने छैक जदी ठानि लेल जाय
चन्द्रमा नै लोक के आबय ला कहलकय
मनुक्ख जानि लेलक चंदा पर गेल जाय
जमाना त सब दिन एहने ख़राब छल
कहियो नै क्यउ मारि मुदा फेक देल जाय
रहय छै सबतरि सब मोन मारि कए
हारब से मानि नहिं डरा आब खेल जाय
लक्ष्मण रेखा खीच राखय छथि लोक सब
निड्डर भ मुदा एक वीर बाढि हेल जाय
मानब नै हम आब धाही ककरो हुजुर
जिनका जे बुझि परै सजा सुना देल जाय
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण- १६ )
राजीव रंजन मिश्र
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