रविवार, 19 अगस्त 2012

गजल

बाल गजल-११

दूधक लोटा ओ ओन्घरेलकौ हमरा पर तमशाय छिही
चिन्हा गेलयं तों आब गै बुढिया तों बस ओकरे माय छिही
बेटा लाट्सहाब बनल छउ हम बेटी छी तैं छी निरसल
अपना कोखिसँ जनलैं हमरा लागै धरि सतमाय छिही
 
ओकरा देल्हिन मोट ओछेना हम सूतय छी अखरे पर
गेरुआ छीनय भइआ तइयो ओकरा नै खिसियाय छिही


ओ पढतै अंगरेजिया इस्कुल हमर नाम सरकारी में
ओकरा लेल छउ टाका-नमरी हमरा पढ़ा बिकाय छिही
नॉन चटाकऽ कंठ दबाकऽ बात-बात में मारयं सभदिन
ऐसँ नीकतऽ कोखे मरितहुं रहि-रहि जे कन्हुआय छिही
धिया-पूत के बीच ई मिथ्या भेद नञि जा धरि दूर हेतय
"नवल" समाजक समृद्धि पर फुसियाहें अगराय छिही

*आखर-२२ (तिथि-०७.०८.२०१२)
पंकज चौधरी (नवलश्री)

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