गजल / कुन्दन कुमार कर्ण
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जाही प्रेम में दर्द नहि, ताहि प्रेम में मजा की
प्रेमसँ बढीक मजा नहि, मुदा धोखासँ बढीक सजा की
जबरदस्तीक मुसकीसँ ओ मोन पतिऔलक
जाही मुसकी में चुसकी नहि, ताहि मुसकी के मजा की
खोटसँ भरल प्रेम के जीनगी भरि पुजलौं
जाहि प्रेम में श्रद्धा नहि, ताहि प्रेमक पुजा की
दिल में जेहो रानी छल सेहो केलक बैमानी
जाहि दिल में रानी नहि, ताहि दिलक राजा की
ताल में रहल जीनगी जेना बेताल भगेल
जाहि में सुरताल नहि होय, तेहन धुनक बाजा की
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रचित तिथि : अगस्ट ८, २०१२
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