गजल
देखिते हम अहाँ के सोचल कि बात भ गेलय
किया मोन हमर बौरहबा जे कात भ गेलय
हम ने बूझि सकल कतबो चाहि आइय्यो धरि
किया जे सगरो मेघ बिना बरसात भ गेलय
चाहल एक बेर नखत चमकय हमरो त'
सगरो घर आँगन बैरीक जिरात भ गेलय
जौ जीवनक खेल चलैत रहलय अहिना त'
बुझबय कैल धैल सभ अन्सोंहात भ गेलय
'राजीव' आब ने रहल भलमन्साहतक मोल
लागय लोक जेना अरिकोचक पात भ गेलय
( सरल वार्णिक बहर वर्ण-१८ )
राजीव रंजन मिश्र
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