गजल
कनी सोची खनिक लेल हम करय जे की चाही
पूछी आर बुझाबी मोन कए पाबय जे की चाही
बिना सोचने करैत चलैत बड्ड दिन बीतल
बजबाक काल ध्यान रहै बताबय जे की चाही
कहल बुढ पुरान जे सत् बाजी हया राखि क'
मिठ्गर बोल सँ बुझा दी जताबय जे की चाही
चुप्प रहब आ बड्ड बाजब दुन्नु ख़राब थिक
माहिर त' इशारे बुझा दैथि होबय जे की चाही
नै उखली बाप दादा आ नै सहैत रही सभटा
सामंजस्य राखि कए आब करी तय जे की चाही
किछु कैल केर दाबी आ किछु विद्रोहक भावना
ध्यान राखि उभय पक्षक बिचारय जे की चाही
समस्या ने छैक कोनो जकर निदान नहि थिक
जौं पूर्वाग्रह तजि सभ क्यौ नियारय जे की चाही
विनम्र जौं ने ठीक त' उदंडतो ने छैक जवाब
दुनू कए सहजोरि सोची निकालय जे की चाही
कथू करय स पहिले राखि ली अवधारि कए
मुलभूत उद्देश्य समाजक होमय जे की चाही
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१८)
राजीव रंजन मिश्र
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