सिह्कैत हवा पर सिसकैत अछि मोन,
हम छी पाथर,आ ओ पाथर,से भेल सोन,...
कनैत रही छी असगर एकात बैसल,
हँसब से ऐहन बाते अछि बचल कोन,.....
चली गेल ओ संग ल' मुइर-सुईद सब,
देलहुं हम जकरा अपन स्नेहक लोन,......
खोले चाहै छी रंग-रभसक बात सब,
मुदा कोना खोलियैक ,मोने भेल अछि मौन,....
'गुंजन' छै लोढ़ैत,गजल बहार बैसल,
आहां रहू अहिना ऐकात,कानि करू होम,...... गुंजन श्री
ग़ज़ल के संवेदना हमरा तक पहुंचल!
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