गजल
नै जानि मिथिला मैथिलीक संस्कार कहाँ चलि गेल यौ
मिथिलाक पावन माटिक व्यवहार केहन भेल यौ
सभ घुमि रहल मउल साजि सबतरि चहुँ दिस
लागल निशि-वासर खिंचय म सबहक नकेल यौ
खेत खरिहानक उपजा बारी आ लोकक खुशहाली
मिटा रहल छै साले साले रौदी आ बाईढक मेल यौ
मोनक भार आ करेजक साती बेटी छै भेल किएक
ई सवालक ने हल कोनो बढ़ल दहेजक खेल यौ
सीता मिथिला क बेटी भ जीवन भरि कानैत रहली
मिथिलाक बेटीक भागे कानबे किएक लिखि देल यौ
स्वार्थे अन्हरायल सभ बेटी के गर्भहिं मारय छथि
जौ नहिं चेतल तुरन्त त झखब नारि कए लेल यौ
सुनल कलियुग सोचल कहल आ कैल टा मानय
'राजीव' चालि प्रकृति सुधारी जुनि बनी बकलेल यौ
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-२०)
राजीव रंजन मिश्र
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