जिनगी केर बाट पर काँट सौँसे गाड़ल छै,
नियति केर टाट बेढ़ सगरो दफानल छै ।
माय-बाप,भाय-बन्धु, छै झुठहि संबध सभ,
मोह-जाल ओझरायल जिनगी गतानल छै ।
कनियो जँ ढीठ बनि सुनलक कियो मन के,
छूतहर घैल बनल समाजो से बारल छै ।
लुटि-कुटि जीवन भरि आनल से बाँटि देल,
खाली हाथ आब देखि परिजन खौंझायल छै ।
बुढ़ भेल, दुरि गेल फकरा बनि बैसल छै
"चंदन" कहय केहन दुनिया अभागल छै ।
-----वर्ण-१७-----