प्रस्तुत अछि कमलमोहन चुन्नू जीक गजल ( इ गजल बिना बहरक अछि) ---
पाछू जँ नहि अमक तँ एकसर सुन्ना की
कानक बेतरे सोना की झुनझुन्ना की
जीरा लए जोलहाल जानकीक नैहर केर
पोखरिए महुराह तँ रोहु की मुन्ना की
सिरिफ अमौट लए रटकल लुधकल भगिनमान
तकर जजातक उपजा की मरहन्ना की
भङघोटनासँ अकछि लोक बन्हलक मुट्ठी
तँ दरबारक कोट-कानूनक जुन्ना की
पथरौटी डिहवार छातियो पाथरकेँ
तकर गोहरिया गुम्हरल की अँखिमुन्ना की
धातुक बासन टुटलोपर बोमियाइत अछि
मैथिल बान साबुत की सकचुन्ना की
डंटी मारए जे बैसल सप्पत खा क'
तकरा लए छै गाँधी की आ अन्ना की
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