धाख सबटा बिसरि गेलै
घोघ हुनकर उतरि गेलै
झूठ कोना कें नुकायत
जखन सोंझा बजरि गेलै
सय बचायब बचत कोना
लाज सबटा ससरि गेलै
ओ छलै फेसन सँ डूबल
काज सबटा पसरि गेलै
भेल नेता नींद में सब
देश सगरो रगरि गेलै
(बहरे-रमल,
SISS दु-दु बेर सभ पांति में )
***जगदानन्द झा 'मनु'
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शनिवार, 24 मार्च 2012
गजल
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