आन्हर बनल सरकार छै, लाचार भेल जनता,
व्यापार पोषित नीति से कोना केर एतइ समता ।
गाम भूखल-पेट देशक, खेत उसर भेल छइ,
बाढ़ि-रौदीक बीच उपजल छइ मात्र दरिद्रता ।
कल-करखाना शहर मे चलइछ दिन-राति जे,
प्रगति के अछि मापदण्ड आ' एकात भेल जनता ।
गाम जा' बसि रहल शहर, जीविका केर जोह मे,
महाजन केर ब्याज-तर, फुला रहल निर्धनता ।
ग्राम-वासिनी भारती, कियेक गेलीह बसै नगर,
कनैत छथि आइ तँइ, ई केहन कैलनि मूर्खता ।
"चंदन" करू आह्ववान, स्वराज के एकबेर फेर,
हँसतीह एही सँ देश , खुशहाल बनत जनता ।
-----वर्ण-१९-----
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