प्रस्तुत अछि कमल मोहन चुन्नू जीक बिना बहरक गजल..
कगनीए पर नाह लगैए बाजू नहि
आङ-समाङक धाह लगैए बाजू नहि
मोसि-कलम-कागत धेने परोपट्टामे
एक्कहु नहि पुरखाह लगैए बाजू नहि
भरल-पुरल दरबज्जा आँगन सजनियाँ
दोगे-दोग अबाह लगैए बाजू नहि
कोन बसात सिहकलै जनमारा पछबा
गामक-गाम रोगाह लगैए बाजू नहि
जाहि आँखिमे भरि जिनगी नहैतहुँ हम
पेनी तकर अथाह लगैए बाजू नहि
होइत रहत एहिना मरलहबा गुरमिन्टी
लोके नहि इरखाह लगैए बाजू नहि
ठीका-मनखपमे उलझल धर्मध्वजी
नेत ओकर मरखाह लगैए बाजू नहि
हड्डी-गुद्दा केर हबक्का सौजनमे
कुकुरो आइ घबाह लगैए बाजू नहि
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