कसीदा - ए - वैदेही
नारी मान बढाबय लेल स्त्री रूप धेलहु वैदेही
धनुष उठा नीपैत पोछैत अहां पूजल भोले के
ओही धनुष ल के अहां स्वयंवर केलहु वैदेही
देश विदेशक राजा आयल देखबै अपन जोर
देखि राम के दूरे से ईश्वर अहां पेलहु वैदेही
कमला कोशी बागमती तजि नेह भेल सरजू सों
आय अयोध्या भेल धन्य एत' अहां एलहु वैदेही
ससुर महात्मा ईश्वर राम सासुर बनल धाम
तीन सासु दियर संग पूर्ण अहां भेलहु वैदेही
पिता वचन के राखि मान देश तजि चलला राम
संस्कार के पाठ गुनैत संगे अहां गेलहु वैदेही
निश्छलता के लाभ उठाय रावण ठकबा आयल
देखि जटायु पंखहीन छुछे नोर देलहु वैदेही
भोर सांझ ल प्रणय निवेदन रावण आबे रोज
पर पुरुख़ बाजू कोना, त्रिन ठोढ धेलहु वैदेही
अग्निपरीक्षा देल तखनो धोबिया भरलक कान
मिथ्या आरोप बुझितो पतिक मान केलहु वैदेही
जीवन छोडि कर्तव्य लेल गेहलौ जंगल कुटिया
सूर्य समान दुहु पूत के कोना पोसलहु वैदेही
कतेक बर्छा भोंकल करेज और कतेक छै बाकी
पुनर्परीक्षा देखि सोझा धरती पैसलहु वैदेही
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