राति क' जानि नै किए नीन नै होइ यै ,
कतबो टाका मे श्वप्न किन नै होइ यै ,
दोसरो सँ मिठ सुख छीन नै होइ यै ,
पुर्णिमा मे अमावश मलीन नै होइ यै ,
देह दुखित , दाबत दिन नै होइ यै ,
पुनः पाबि पंक पथ नीन नै होइ यै ,
आब त' सुखल नोरो भीन नै होइ यै ,
हमहुँ भिखमंगा , देख घीन नै होइ यै ,
"अमित" दुनू कहियो तीन नै होइ यै . . . । ।
कतबो टाका मे श्वप्न किन नै होइ यै ,
जग फोँफ काटै हम करोट फेरै छी ,
दोसरो सँ मिठ सुख छीन नै होइ यै ,
अनंत अकास तरेगण पसरल ,
पुर्णिमा मे अमावश मलीन नै होइ यै ,
दर्दक दुहल देह दैबो नै देखै छै ,
देह दुखित , दाबत दिन नै होइ यै ,
प्रेयषी प्रेमक पता पलक पुछैए ,
पुनः पाबि पंक पथ नीन नै होइ यै ,
जिनगी जहल अपने लोक बनेलक ,
आब त' सुखल नोरो भीन नै होइ यै ,
कते कठिन छै किनब कतौ प्रेम ,
हमहुँ भिखमंगा , देख घीन नै होइ यै ,
प्रेम मे दर्द , नीनक मेल नै होइ छै ,
"अमित" दुनू कहियो तीन नै होइ यै . . . । ।
अमित मिश्र
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