लोक कहैये वाह-वाह की खूब लिखै छी,
कोना कही जेँ, कलमे सँ गुदरी सीबै छी
शब्द-जाल बुनै छी आ' ओकरे ओझराबी,
सोझराबै में ओकरे खाली दिन कटै छी
रास-रंग के लोभ देखा क' मोन बुझाबी,
देह जरैये, खाली खूनक सेप घोटै छी
कत्त गेल ओ' रीत पुरनका से नैँ जानी,
"चंदन" गाबै छी गीत, मधुघट पीबै छी
-----वर्ण-१५--------
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