कयल कोन पाप, नहि जानि की भ' गेलइ,
लगेलौं नेह जकरे सँ, ककरो मीत बनि गेलइ
करय छी प्रेम कतबा हम, ओ' जानि नहि सकल,
आ'कि जानि-बूझि के, अनचिन्ह बनि गेलइ
सिनेहक ताग कतय गेल, संबंध की भेलइ
जीनगीक राग-रभस सभ-टा टीस बनि गेलइ
जग छैक सत्ते "झूठ", बात बूझ ने "चंदन"
टुटै छै स्वप्न सहस्त्रो, एकटा फेर टुटि गेलइ
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