मंगलवार, 13 मार्च 2012

गजल

नढ़िया भुकैत छै हमर घराड़ीपर
बसलौं परदेशमे हम खोबाड़ीपर

दूध-दही पान मखान सभ छोरि एलौं
छी पेट पोसने तँ  दू टूक सुपारीपर

जे किछु कमेलहुँ हाथ-पएर तोरि कऽ 
साँझ परैत खर्च भेल छूछे ताड़ीपर

बचेलौं बरख भरि पेट काति-काति कऽ 
गमेलौं गाम जए-आबक सबारीपर

छोरु दोसरक आशा अपन बसाऊ यौ
घुरि आउ मनुसोनसन घराड़ीपर

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१५)

@ जगदानन्द झा ‘मनु’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों