बंद आँखि सँ होइ कल्पना ,
राति-दिन हुनके सपना ,
प्रेम भरल घर अंगना ,
आधा-अधुरा होइ सामना ,
मात्र ओ छथि के करत मना ,
नैन मिलेने फाँकैत चना ,
मात्र केलौँ हुनके रचना ,
राति -दिन हुनके सपना . . . । ।
राति-दिन हुनके सपना ,
बोली,फूल बरसै गमकै
प्रेम भरल घर अंगना ,
कैनवास पर फोटो जेकाँ ,
आधा-अधुरा होइ सामना ,
कोनो रोक नै जोर चलैए ,
मात्र ओ छथि के करत मना ,
घुमै छी दोसर नगर मे ,
नैन मिलेने फाँकैत चना ,
कहै यै आलसी इ दुनियाँ
मात्र केलौँ हुनके रचना ,
सपना आ कल्पना "अमित" ,
राति -दिन हुनके सपना . . . । ।
अमित मिश्र
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