सोमवार, 9 अप्रैल 2012

समीक्षा


विदेह ई-पत्रिकाक १ अप्रैल २०१२ केर नब अंक मे प्रकाशित श्री प्रेमचन्द्र पंकजजीक दू टा गजल पढलौं। एहि दूनू गजल केँ हम गजलक व्याकरणक आधार पर देखबाक प्रयास कएलौं। हम दूनू गजल पर आ प्रत्येक पाँति पर अपन विचार राखि रहल छी।
गजल १
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब

चाङुर अपन पसारि रहल अछि माथापर सम्बन्धक बाज
कोन विधि बाँचत प्रीत कहब, नहि गजल कहब

कतबो माँटि सुँघाएब तैओ नहि मानब हम अप्पन हारि
चारु नाल पछाड़ि अपन हम जीत करब नहि गजल कहब

गगनक मुँहकेँ चूमए कतबो ठाढ़ अहाँ केर शीसमहल
बस कखनहुँ बालुक भीत करब नहि गजल कहब

हाथ पसारब रहत पसरले, मुँहे टेढ़ करब तँ की
कनि दूसि मुँह विपरीत चलब, नहि गजल कहब

पहिल गजलक मतला पढला पर बुझाइए जे रदीफ "कहब, नहि गजल कहब" अछि आ काफिया मे "ईत" प्रयोग भेल अछि। दोसर शेर मे यैह रदीफ आ काफिया लेल गेल अछि। मुदा तेसर आ चारिम शेर मे आबि कऽ रदीफक "कहब"क बदला मे "करब" उपयोग कएल गेल अछि। पाँचम शेर मे एकरा बदलि कऽ "चलब" कऽ देल गेल अछि। ऐ सँ इ बुझा लगैए जे रदीफ "नहि गजल कहब" अछि आ दू टा काफिया "ईत" युक्त शब्द आ "अब" युक्त शब्द अछि। जँ गजलकार यैह रदीफ आ काफिया मानि कऽ चलल छथि तँ हुनका प्रत्येक शेर मे एकरे प्रयोग करबाक चाही। तखन रदीफ आ काफियाक दोख नै रहितै। रदीफक नियमक मोताबिक प्रत्येक गजलक एकेटा रदीफ होइत अछि आ एकर पालन ओहि गजलक प्रत्येक शेर मे होयबाक चाही। तहिना काफियाक नियमक मोताबिक प्रत्येक शेर मे काफिया एके हेबाक चाही। आब कनी बहर पर चर्च करी। ई गजल सरल वार्णिक बहर वा वार्णिक बहर पर नै लिखल गेल अछि। अरबी बहर मे अछि की नै ई जनबा लेल हम सब एक एक टा पाँतिक विश्लेषण करी। जँ ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानी तँ पहिल शेर मे देखल जाओः-
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
११ २१ १२ २१ २१ १११ ११ १११ १११
आब दोसर पाँति
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब
१२ १११ २१ ११ २१ १११ ११ १११ १११
ऊपर दूनू पाँति मे देखि सकै छी जे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ तैं इ शेर कोनो बहर मे नै अछि। जखन मतले कोन बहर मे नै अछि, तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। निष्कर्ष यैह जे गजल कोनो बहर मे नै अछि। आन शेरक विश्लेषण पाठक अपने ऐ आधार पर कऽ सकैत छथि।

आब दोसर गजल देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब

साँढ़ छैक छुट्टा आ पाड़ा मरखाह कतैक
बाँचल फसिलकेर सुरजाक रखबारि लिखब

थानामे नाङट भेलि रमियाक हाकरोस-
सुननिहार केओ नहि तकरे पुछारि लिखब

बारल खेलौनासँ, पोथीसँ दूर कएल
जिनगीक बोझ उघैत नेनाक भोकारि लिखब

नाचि रहल लोक आइ असली नचनिञा सभ
नचा रहल परदासँ केओ परतारि लिखब

फाटल अकास छै सीअत के-कते कोना
लिखब जे “पंकज” बेर-बेर विचारि लिखब
एहि गजल मे काफिया "आरि" युक्त अछि आ रदीफ "लिखब" अछि। ऐ हिसाबेँ रदीफ आ काफिया ठीक अछि। सरल वार्णिक बाहर वा वार्णिक बहर वा अरबी बहर मे इहो गजल नै अछि। ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानि कऽ मतला केँ देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
११११ १२२ ११ २११ ११ १२१ १११
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब
२१ ११ १११२१ २१ ११२१ १११
इहो गजलक मतला मे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ इ कोनो बहर मे नै अछि। इहो गजल मे जखन मतले बहर मे नै अछि तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। एहि आधार पर इ निष्कर्ष निकलैए जे इहो गजल कोनो बहर मे नै अछि। एहि तरहेँ देखल जा सकैए जे दूनू गजलक बहर दुरूस्त नै छै। ऐठाँ ई बता दी की संयुक्ताक्षर सँ पूर्वक वर्ण दीर्घ मानल जाइए आ अनुस्वार बला वर्ण सेहो दीर्घ मानल जाइए।
गजलक विषयवस्तु नीक अछि। दोसर गजल "आजाद गजलक"क श्रेणी मे अछि आ पहिलुक गजल काफिया दोखक कारण गजल नै अछि। सादर।

1 टिप्पणी:

  1. नीक समीक्षा। आशा अछि प्रेमचंद पंकज जी अपना आपमे सुधार करताह आ भविष्यमे नीक गजलकार बनताह। .

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों