गजल-२३
पुनिमक राति केर चान सन चमकैत छी अहाँ
अँगना केर तुलसी चौरा सन गमकैत छी अहाँ
कखनहु मायक ममता बनि झहरैत छी अहाँ
कखनहुँ आगि केर ज्वाला बनि धधकैत छी अहाँ
कखनहु संगी-बहिनपा बनि हँसबैत छी अहाँ
कखनहुँ जीवन संगिनी बनि बुझबैत छी अहाँ
कखनहु अबला के रूप धरी फकरैत छी अहाँ
कखनहु काली केर रूप धरी डरबैत छी अहाँ
कखनहु प्रेमक मुरति बनि सिखबैत छी अहाँ
"चंदन" नारी केर रूप अनेक देखबैत छी अहाँ
-----वर्ण-१९-----.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें