शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

गजल


जियबा के लेल आब सांस नहि छै बांकी ।२।
अहांसँ मिलन के कोनो आश नहि छै बांकी ।

मधुर मिलन के जे आश छल सेहो रहल अधुरा ।२।
जीनगी जियबा में आब किछू खास नहि छै बांकी ।

सपना जे सजल रहय सब जरीक छाउर भ गेल ।२।
जग में हमर अस्तित्व के होब नाश नहि छै बांकी ।

खुशी आ उमंग के सब गाछ में पतझड भ गेल ।२।
जीनगी में आब वसन्तक कोनो मास नहि छै बांकी ।

रचि-रचि क बाग सजेलौं बहार केरे आश में ।२।
कली त खिलल मुदा फुल में सुवास नहि छै बांकी ।

अनहरीया भेल हृदय सदैब अनहारे रहिगेल ।२।
आत्माके दीप में आब प्रकाश नहि छै बांकी ।

सदा के लेल मेटा लिअ हमर नाम अपन दिलसँ ।२।
अहाँ लेल अही धरती पर हमर लास नहि छै बांकी ।
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रचित तिथि - २० अप्रिल २०१२
पहिलबेर प्रकाशित : २० अप्रिल २०१२ (फेसबुक)
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