सोमवार, 30 अप्रैल 2012

गजल

जल
बड़को बड़का के नहि छै आब सट्ठा
के आब ककरा दैए घी आ मट्ठा

ईंटाक घर ककरो ककरो होइ छल पहिने
गाम गाम मे खुजि गेल आब त भट्ठा

सिल्क पॉलिस्टर कीमती वस्त्र पौशाक भेलै
के पहिरैये मोट झोट आ लट्ठा

गामो मे स्क्वायर फूट मे बिकाइए जमीन
बिसरि जायब किछु दिन मे धूर आ कट्ठा

इलेक्ट्रॉनिक मीडियाक जमाना ई आबि गेल
नवयुग मे नहि भेटत स्लेट आ भट्ठा

जनता महगाइ सँ त्राहि त्राहि करै
भ्रष्टाचारी खाईए घी आ मट्ठा

चोर चोर मौसियौत भाई जखने भ गेल
के खोलत आब ककर कच्चा चिट्ठा

सदरे आलम गौहर
मो-9006326629

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों