गजल-२१
कौआ कूचरल भोरे अँगना साँझ परैत औथिन्ह सजना,
छम-छम-छम-छम पायल बाजे खनकि उठल कंगना ।
सासुक बोली लगैए पियरगर ननदि बनल बहिना,
गम-गम-गमकय तुलसीक चौरा चानन सन अँगना ।
रचि-रचि साजल रूप मनोहर कत'बेर देखल ऐना,
टिकुली-काजर जुट्टी-खोपा नवका-नुआ चमकय गहना ।
पहिलहि साँझ बारल दीप-बाती जगमग घर-अँगना,
उगल चान असमान हृदय मे उठल विरह वेदना ।
सेज सजौने बाट तकैत छी एताह कखन घर सजना,
"चंदन" सजनी गुनधुन बैसलि की मांगब मुँह बजना ।
-----वर्ण-२२-----
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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012
गजल
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Chandan Jha
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