हम जे लिखि छड़िया जाइत अछि ,
जकरे बजावि पड़ा जाइत अछि ।
सब अपने मे रहे लीन एतेक,
चैन एना किया नुका जाइत अछि ।
दुनिया केर एहन भीर-भार मे ,
निक लोक कतै हरा जाइत अछि ।
संसार के रिवाज एहन विकट,
खसै पर सेहो हँसा जाइत अछि ।
कनि सोचु केना के होइत छै ''अंशु'' ,
इन्द्रधनुषो त' बिला जाइत अछि ।
वर्ण -१३
अविनाश झा अंशु
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