बाल-गजल-५
साँझ परल, बैसि पिपर पर चिड़ै करय पंचैती,
सूगा-मैना ब्याह रचाओत बगुला करय घटकैती ।
फुदकि-फुदकि के फुद्दी नाचय फेर हेतै वनभोज,
कौआ पिजबैछ लोल कोइली गाबि रहल छइ चैती ।
बगरा-परबा अपस्याँत अछि इंतजाम मे लागल,
डकहर बैसल सोचि रहल कोना हेतै कुटमैती ।
पोरकी पिपही बजा रहल छै टिटही पिटै ढोलक,
मोर नचैछै ता-ता-थैया "चंदन" अद्भुत ई कुटमैती ।
-----वर्ण-२०-----
-----वर्ण-२०-----
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