सदिखन अहीँ धेआन मे रहलौँ हमर
कखनो अहाँ धेआन मे रमलौँ हमर
शोणित अपन देलौँ जड़ा लिखलौँ गजल
की पाँति एको प्रेम मे रचलौँ हमर
नै थाह भेटल कोन घर छै प्रेम यै
कहने छलौँ जे झूठ सन कहलौँ हमर
छी कल्पना मे रूप फोटो छापने
की दिल सँ एक्को बेर मन गमलौँ हमर
छी ठेठ हम भाषा हमर बूझलौँ कहू
की "अमित" नेहक भाव के पढ़लौँ हमर
{मुस्तफइलुन
2212 तीन बेर सब पाँति मे}
बहरे-रजज
अमित मिश्र
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