बीतल दिनक ओ प्यार कत' चलि गेल यौ
नेहक जुड़ल ओ तार कत' चलि गेल यौ
जै ताल मे हम भासि गेलो सादिखने
मचलैत छल ओ धार कत' चलि गेल यौ
फूलो सँ कोमल घेँट मे लटकैत जे
दू बाँहि के ओ हार कत' चलि गेल यौ
सब अंग छै गाथा कला के कहि रहल
मधुमास के श्रृंगार कत' चलि गेल यौ
बदलैत मौसम के मजा नै आब छै
जेठक तपल ओ जाड़ कत' चलि गेल यौ
छै कल्पना मे बनल रचना मात्र ओ
छै "अमित" के ओ प्यार कत' चलि गेल यौ
मुस्तफइलुन
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ
बहरे-रजज
अमित मिश्र
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