गजल-२२
हमरा इजोते सँ लगइत अछि आब डर,
चुप भेल तैँ बइसल छी हम अन्हार घर ।
नहि मोन अछि हमरा नाम आ' परिचय,
अनजान छी संसार मे तेँ घुमैत छी निडर ।
तकैत अछि लोक नाम मे पहचान लोक के,
गुण-शीलक आब समाज मे छै कहाँ मोजर ।
संबंध नहि जकरा सँ बनल सैह समांग,
तोड़लक भरोस ओ' भरोसे छलहु जकर ।
"चंदन" जगके रीति ओझराउ नहि जिनगी
सुनू खबरदार ! हरदम रहू बेखबर ।
-----वर्ण-१७-----
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