सोमवार, 30 अप्रैल 2012

गजल

एक बेर नजैर मिला झूका लेलियै किए
मिला नैन सँ नैन अहाँ हाँसी देलियै किए
अहाँक किछु कहवाक मोन होइत छल
फेर किछु सोचि चुप भs अहाँ गेलियै किए
नाम तs नहि अछि बुझल अहाँक हमरा
मुदा नैन देख किछु सोइच लेलियै किए
सब दिन तs देखी अहाँक जाइत आबैत
आइ नै देख हम व्याकुल भs गेलियै किए
अहाँ सब दिन चुपे चाप चलि जाइत छी
आइ ''मुकुंद'' कने मुस्किया क गेलियै किए
वर्ण-१६
मुकुंद ''मयंक''

गजल

जल
बड़को बड़का के नहि छै आब सट्ठा
के आब ककरा दैए घी आ मट्ठा

ईंटाक घर ककरो ककरो होइ छल पहिने
गाम गाम मे खुजि गेल आब त भट्ठा

सिल्क पॉलिस्टर कीमती वस्त्र पौशाक भेलै
के पहिरैये मोट झोट आ लट्ठा

गामो मे स्क्वायर फूट मे बिकाइए जमीन
बिसरि जायब किछु दिन मे धूर आ कट्ठा

इलेक्ट्रॉनिक मीडियाक जमाना ई आबि गेल
नवयुग मे नहि भेटत स्लेट आ भट्ठा

जनता महगाइ सँ त्राहि त्राहि करै
भ्रष्टाचारी खाईए घी आ मट्ठा

चोर चोर मौसियौत भाई जखने भ गेल
के खोलत आब ककर कच्चा चिट्ठा

सदरे आलम गौहर
मो-9006326629

गजल

रावणक मुत्ती सँ लुत्ती नै मिझा सकैए
कंठ जेना ओस चाटिक' नै भिजा सकैए
आंत जुन्ना जखन बनि गेलै भुखे पियासे
छोट सरकारी मदति भुख नै भगा सकैए
गेल गामक गाम जड़ि सुड्डाह भेल कोठी
ठोर मुस्की दैत हाथो नै उठा सकैए
पाइ के छाहरि बिछौना पर जँ सुतल नेता
दर्द लोकक ओकरा कोना जगा सकैए
आब महगाई ल' रहलै आइ जीब कोना
"अमित" कागज नै गजल कोना लिखा सकैए
2122-2122-212-122
अमित मिश्र

गजल

करेजक नस मांसके पाथर बना लिअ
गरीबक दुख दर्दके मोहर बना लिअ
मरै छै बेटी जँ कोखे दिन दहारे
पवनपुत्रक धामके कोबर{कोहबर} बना लिअ
सिनेहक बीया असंभव भेल रोपब
मनोजक नद मोनके विषधर बना लिअ
कलह करबै भूख नेता देखियौ ने
जवानक सब बातके सोँगर बना लिअ
अपन हेतै देश संगे प्रात हेतै
कटारक कर "अमित" के भोथर बना लिअ
मफाईलुन-फइलातुन-फइलातुन
1222-2122-2122
बहरे -सरीम
अमित मिश्र

गजल

फूलक बाड़ी जकाँ लागैए गाम हमर
पूसक गाछी जकाँ लागैए गाम हमर
गीतक बेजोड़ घारा छै माधुर्य भरल
मोहक पोथी जकाँ लागैए गाम हमर
साजल पौती ल' एलै मास प्रेम भरल
सोमक बाटी जकाँ लागैए गाम हमर
बाँटल नै खेत छै नै कोनो काज अलग
बाटक संगी जकाँ लागैए गाम हमर
सागर भेलै जहाँ (जगत) छै सोती गाम "अमित"
प्रेमक बोली जकाँ लागैए गाम हमर
वर्ण-15
दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व
वार्णिक बहर
अमित मिश्र

गजल

पूसक गाछी जकाँ लागैए गाम हमर
बंजर परती जकाँ लागैए गाम हमर
वर्फक ढेला सँ छाँपल नै जीयल त' मरल
भूतक कोठी जकाँ लागैए गाम हमर
छै महिला बूढ़ नेना थाकल गाम मात्र
बासी रोटी जकाँ लागैए गाम हमर
नवतुरिया दौड़ लगबै शहरक पानि लेल
हारल पारी जकाँ लागैए गाम हमर
कहिया सरकार जागत हेतै "अमित" भोर
कारी मोती जकाँ लागैए गाम हमर
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व
अमित मिश्र

हजल

लागि जाए जखन बुद्धिमे दिवार यौ
अहाँ ऐरावत जीसँ लिअ विचार यौ
चैढ़ हास्यक महल पर चिकरता
सोचबाक लेल छड़पता पहाड़ यौ
बान्हि क' लंगौटा पाकल मोछ राँगि क'
लड़ा दै छथि शेर गीदर बीमार यौ
नाक सँ पानि खसैए हाथ काँपि जाए
भोज मे आगू रूप बनल चुहार यौ
मारि पैना टाँग हाथ छौड़ा दै तर्कक
तर्क सँ "अमित" भेलौँ लरपुआर यौ
वर्ण-14
अमित मिश्र

गजल

बाल गजल




सूगाके आइ वियाह हेतै
मैना रानी कनियाँ बनलै
पेड़ा वर्फी और रसगुल्ला
पूरी सब्जी पलाऊ बनतै
कोइली बहिन गीत गेतै
जुगनू संगी बाँल्ब जरेतै
बंदर मामा ढोल बजेतै
मोर चाची झूमि क' नाचतै
हाथी दादा लड़का ल' जेतै
खरहा खूब बम फोड़तै
जंगल के सब बरियाती
भालू भैया सब के बैसेतै
शेर देतै आशीष "अमित"
गीदर सब मंत्र पढ़ेतै
सरल वार्णिक बहर
वर्ण-10
अमित मिश्र

गजल

टिटही टेकलक अकासके
असगर जीत लेत तासके
आँङुर एक के त' काज छै
छै बलगर दमगर बासके
एहन लोक आश तोड़ि दै
बाबा बनल मोह पाशके
छै मानव जँ राम काज की
पाथर पूजि दिन उपासके
केवल कर्म मात्र अपन छै
आ छै "अमित" उपज चासके
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-
अमित मिश्र

गजल

खिड़की सँ सीधे देखै छलौँ हम चान
घन तिमिर मोनक छाँटै छलौँ हम चान
हेतै अपन फेरो भेँट ओतै जा क'
तेँ जागि आशा लगबै छलौँ हम चान
दिन भरि समाजक पहरा कतेको नयन
छवि संग तोहर भटकै छलौँ हम चान
लागै तरेगण लोचन पलक झपकैत
बनि मेघ घोघट लागै छलौँ हम चान
शुभ राति फेरो भेटब अमिय नेहक ल'
सब दिन "अमित" नव आबै छलौँ हम चान
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु
{दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व}
बहरे-सलीम
अमित मिश्र

रूबाइ

मोनक बात मोने रहि गेल की कहब
मुस्की डर सँ कोने रहि गेल की कहब
देख नवका जमाना दंग रहि गेलौँ
खाना सब अनोने रहि गेल की कहब
2
रूबाइ जहिया करेह कोशी ठामे ठाम उफनतै बान्ह टूटतै
तहिया बाढ़ि एतै आ सब एक दोसरक मान राखतै
मरबाक ड'रे छोट पैघ सब जुटत एक डिह पर
तहिये हेतै असल भोर संग दाहा आ लवाण करतै
3
फूलक पराग विष बनल पात बनल तलबार छै
प्रेम पथिक छै बाट बिसरल आ बिसरल संसार छै
जिनगी जहल बनि गेल फाँसी चढ़ेलक भुख पियास
अजब गजब के अगुआ जखन बनल सरकार छै

गजल



साबन में बरसै छै बदरिया गाम आबू ने पिया सबरिया
अंग अंग में उठल दरदिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

प्रेम मिलन के आएल महिना बड मोन भावन छै सावन
कुहू कुहू कुह्कैय कोईलिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

नील गगन सीतल पवन लेलक चढ़ल जोवन उफान
इआद अबैय प्रेम पिरितिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

मोन उपवन साजन प्रेम रासक रस सं भरल जोवन
मोन पडैय अहाँक सुरतिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

मोन बौआइए किछु ने फुराइए जागी जागी वितैय रतिया
पिया कटैय छि हम अहुरिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया
.................वर्ण:-२३.....................

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

गजल





सावन भादव कमला कोशी जवान भSगेलै
कमला कोशी मारैय हिलोर तूफान भSगेलै

कोशी केर कमला सेहो पैंच दैछई पईन
कोशीक बहाब सं मिथिला में डूबान भSगेलै

कोशी के जुवानी उठलै प्रलयंकारी उन्माद
दहिगेलै वलिनाली बर्बाद किसान भSगेलै

गिरलै महल अटारी आओर कोठी भखारी
खेत बारी घर घर घरारी सभ धसान भSगेलै

निरीह अछि मिथिलावासी के सुनत पुकार
खेतक अन्न घरक धन अवसान भSगेलै

कोशिक कहर नहि जानी की गाम की शहर
घुईट घुईट जहर सभ हैरान भSगेलै

खेत में झुलैत हरियर धान बारीमे पान
दाहर में डुबिक नगरी समसान भSगेलै

भूखल देह सुखल "प्रभात" मचान भSगेलै
कोशिक प्रकोप सं मिथिला परेशान भSगेलै
...........वर्ण-१७..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


तकियो कनी कानैए उघारल लोक
गाडब कते, दुख मे बड्ड गाडल लोक

धरले रहत सब हथियार शस्त्रागार
बनलै मिसाइल भूखे झमारल लोक

छै भरल चिनगीये टा करेजा जरल
अहुँ केँ उखाडत सबठाँ, उखाडल लोक

लोकक बले राजभवन, इ गेलौं बिसरि
खाली करू आबैए खिहारल लोक

माँगी अहाँ "ओम"क वोट मुस्की मारि
पटिया सकत नै एतय बिसारल लोक
बहरे-सलीम
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु (पाँति मे एक बेर)

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

गजल


हम जे लिखि छड़िया जाइत अछि ,
जकरे बजावि पड़ा जाइत अछि ।

सब अपने मे रहे लीन एतेक,
चैन एना किया नुका जाइत अछि ।

दुनिया केर एहन भीर-भार मे ,
निक लोक कतै हरा जाइत अछि ।

संसार के रिवाज एहन विकट,
खसै पर सेहो हँसा जाइत अछि ।

कनि सोचु केना के होइत छै ''अंशु'' ,
इन्द्रधनुषो त' बिला जाइत अछि ।

वर्ण -१३
अविनाश झा अंशु

रुबाइ





नजरि मीलै छै आ कने झुकि जाइ छै
डेगो तँ उठै छै आ कने रुकि जाइ छै
प्रेममे सभहँक हालति एहने हेतै
देह साबुत रहितों करेज टुटि जाइ छै

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

गजल

                        

कनिया निक लगैय श्रृंगार कने सैज धैजके चलु
गला शोभैय हिरा हार कने चमैक चमैकके चलु

शोरह वसंतक जोवन लगैय हिमगिरी पहार
गोरी भगेल अहाँ से पियार कने सैट सैटके चलु

अहाँक रूपरंगक छाया में भSगेलैय लोक बीमार
चढ़ल छै कतेको कें बोखार कने हैट हैटके चलु

सोनपरी के देख दुनिया फेकी रहल छै मायाजाल
गोरी बड जालिम छै संसार कने बैच बैचके चलु

इन्द्रपरी गगन सं उतरी चलैय प्रभातक संग
देखैला लोक लागल बजार कने हैंस हैंसके चलू
............वर्ण-२०..................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट



रुबाइ


दिल लगा कs किएक कियो मुह मोईड लैय

प्रीत सं भरल दिल के पल में तोईड दैय

बड नाजुक होएत छै प्रेमक धागा बन्हन

दगा देला सं दिल के संग दिल छोईड दैय

गजल



गजल-३१

नैनक बाण चलाके हम्मर अपटी खेत मे प्राण लेलौँ
झूठहि छल जे प्रेम-पिहानी से सभटा हम जानि गेलौँ

सप्पत खयने रही अहाँ जे आयब हम्मर सपना मे
सपना देखब सपने रहल निन्नो अहाँ दफानि लेलौँ

रहै मोन जे प्रेम-रस सँ भीजा गढ़ब नूतन जिनगी
हम एहि मे सौरभ मिझरेलौँ अहाँ नोर सँ सानि देलौँ

मोन छल जे मूक्त गगन मे उड़ब अहाँ आ' हम संगे
उड़ि गेलौँ कतऽ अहाँ ने जानि हमरा एहिठाँ छानि गेलौँ

हमरा बिनु जँ जीबि सकी तऽ जीबू अहाँ सुखक जिनगी
बाट तकिते अहीँ के "चंदन" काटब जिनगी ठानि लेलौँ

--------वर्ण-२१-----------

गजल



गजल-३०

हमतऽ कनिते रही आँखिक नोरे सूखा गेलइ
अपने कानब पर देखू हमरा हँसा गेलइ

लोक पुछलक जखन कहल ने भेल किछुओ
असगरे आइ सभ बात अनेरे बजा गेलइ

साओन-बदरी जे आगि उनटे धधकि उठल
आइ सैह आगि एकबूँद पसेने पझा गेलइ

बैसि अँगना भरि राति गनैत छलौँ तरेगन
आइ सैह तरेगन केयो आँचर सजा गेलइ

कतेको साल सँ पटबैत छलौँजे गाछ "चंदन"
आइ अँगना मे सैह रोपल गाछ फुला गेलइ

--------वर्ण-१८-----------

गजल



सुन्दर शांत मिथिला में मचल बबाल छै
जातपात भेदभावक उठल सबाल छै

नहि जानी किएक कियो करैय भेदभाव
सदभाव सृजना केर उठल सबाल छै

मनुख केर मनुख बुझैय छुतहा घैल
उंच नीच छुवाछुतक उठल सबाल छै

डोम घर में राम जी केनेछ्ल जलपान
ओहू पर कहियो कोनो उठल सबाल छै

सबरी क जूठ बैर सेहो खेलैथ राम जी
ओहू पर कहाँ कहियो उठल सबाल छै
............वर्ण-१६..........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

गजल


हमर जीवन भरि करेजा तुटिते रहल
सब कियो हमरा सँ आई फुटिते रहल

जेकरा हम अपन तन मन सब सोपलौं
मोन कें ओ हमर सदिखन लुटिते रहल

हमर भागक कनिक लिखलाहा देखियौ
किछ जए लिखलौं छने में मिटिते रहल

पीठ पाँछा आब रेतै गरदैन अछि
प्रेम एक दोसर सँ सबतरि छुटिते रहल

आब बैसल मनु झमारल हारल कनै
जोडलौं कतबो मुदा मन तुटिते रहल

(बहरे जदीद -2122-2122-2212)
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

गजल

टोना ओहे जे टोनै सभकेँ
तारी  ओहे जे तारै सभकेँ 

लेखक ओहे जे मानै मनकेँ  
रचना सभ हुनकर छूबै सभकेँ  

कनियाँ  ओहे जे भाबै वरकेँ   
सासुरमे अपना बूझै सभकेँ 

नेता ओहे जे माने विधि नै 
जूता मुक्का जे खालै सभकेँ  

घरकेँ  बेटा  नै राखे  मनदू 
आश्रम आगू ओ जीतै सभकेँ  

(मात्राक्रम - नअ नअटा दीर्घ सभ पाँतिमे)  

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

गजल



सदिखन अहीँ धेआन मे रहलौँ हमर
कखनो अहाँ धेआन मे रमलौँ हमर

शोणित अपन देलौँ जड़ा लिखलौँ गजल
की पाँति एको प्रेम मे रचलौँ हमर

नै थाह भेटल कोन घर छै प्रेम यै
कहने छलौँ जे झूठ सन कहलौँ हमर

छी कल्पना मे रूप फोटो छापने
की दिल सँ एक्को बेर मन गमलौँ हमर

छी ठेठ हम भाषा हमर बूझलौँ कहू
की "अमित" नेहक भाव के पढ़लौँ हमर

{मुस्तफइलुन
2212 तीन बेर सब पाँति मे}
बहरे-रजज

अमित मिश्र

गजल



आइ नौला{पोखरि के नाम} मे माछ चल मारब कने
जाल मच्छरदानी वला फेकब कने

बहुत टिकुला छै खसल गाछी भरल छै
ओकरो झोरी भरि क' चल आनब कने

माछ चटनी खाएब रोटी भात रौ
डोलपाती चल संग मे खेलब कने

छोट बौआ छी पैघ सन छै सोच रौ
आब कखनो संसार नै बाँटब कने

एक छी हम सब एक थारी मे रहब
" अमित" नवका मिथिला अपन माँगब कने

फाइलातुन-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2122-2212-2212
बहरे-हमीम

नौला{पोखरि के नाम}


हमरा बाल गजल लिखनाइ बड कठिन लागैत अछि ,कारण कोनो बच्चा के सदिखन आँखिक सोझा नै देखैत छी जे ओकर मन पढ़ि सकब ।जे लिखै छी सँ मात्र कल्पना । एकटा हमरे शेर छल

कल्पना कते दिन टिकतै दिल सँ कहू
गामक हवा मे साँस ल' गजल लिखू

तेए हमरा लागि रहल जे कल्पना सँ बाल गजल हमरा सँ सम्भव नै अछि ।ओना इ गजल 11 -12 वयस के बच्चा के केन्द्र मे ल' लिखने छी । आब अहाँ सब कहू जे एकरा बाल गजल कहब की वयस्क गजल ।

अमित मिश्र

गजल



पाहुन कने अटकि जाऊ किछु बात करबाक अछि यौ
हमरा कने हाथ मे लेने हाथ कहबाक अछि यौ

जाएब चलि कोन सदिखन रोकब अहाँ रूकबै जे
काजर कने नैन मे अपने लग लगेबाक अछि यौ

श्रृंगार छी हमर सबटा जानम अहाँ जानि लिअ यौ
चुटकी सिनूरक पिया आ टिकुली सटेबाक अछि यौ

परदेश मे जाइ छी कहिया भेँट हेबै अहाँ यौ
जी भरि क' एखन त' नेहक सोना तपेबाक अछि यौ

आँचर सँ बान्हब करेजा मे साटि सब किछु कहब हम
हम हँसब आ "अमित" राजा के बड हँसेबाक अछि यौ

मुस्तफइलुन-फाइलातुन
{2212-2122 दू बेर सब पाँति मे}
बहरे-मुजस्सम वा मुजास

अमित मिश्र

गजल

खाली हुनक बाते छलै फूल सन
बाँकी बचल सबटा छलै शूल सन

खंजर बनल नैनक कमल कोर छल
ठोरक त' लाली आगि जड़ मूल सन

बदलल किए सब आइ से जानि नै
छल नेह काँटक पैघ टा कूल सन

छै आब सपना देखब व्यर्थ सन
भेलै कहाँ ओ हमर अनुकूल सन

जाएब हम पागल भ' कहलौँ सते
छै "अमित" सब किछु भेल निर्मूल सन

2212-2212-212

अमित मिश्र

गजल


किए एखन दिल हमर शाइर बनल छै
लिखल जेकर नाम ओ एखन कटल छै

बनाबी हम रूप जे शब्दक नगर मे
नगर ओकर नैन के लागै जहल छै

गजल जेहन हम लिखै सबदिन छलौँ से
कहाँ हमरा मोन मे ओहन गजल छै

दिनक काटै रौद रातिक चान धधकै
बहर मारै जान पथ काँटक बनल छै

कखन हारब जीवनक अनमोल पारी
"अमित" जा धरि छी करै शेरक कहल छै

मफाईलुन-फाइलातुन-फाइलातुन
1222-2122-2122
बहरे - सरीम

अमित मिश्र

गजल



अहाँक रूप देख देख जीवन जी लै छी हम
मदिराएल नैन देख क' कने पी लै छी हम

ओना त' बड बड़बड़ाइत रहै छी सखरो
अहाँक ठोर खुलै यै त' अपन सी लै छी हम

अहाँ मक्खन अहाँक परतर कोना करब
दूर नै भ' जाउँ अहाँ सँ तेँए दही लै छी हम

बात इ अलग जे जमाना कहै प्रेमी हमर
अहाँ त' जानै छी दर्द छोड़ि और की लै छी हम

सब सप्पत अहीँ के नामे अहीँ के नामे साँस
प्राणो छै अहीँ के नामे की ऐ सँ बेसी लै छी हम

नव दिवस मे करू सजनी नवका गप्प यै
"अमित" अहाँ पर एकटा शाइरी लै छी हम

वर्ण-17
अमित मिश्र

गजल



दोसरक दर्द अपन बूझि जड़ि रहल छी हम
छी अपने समाजक तेँ संग मरि रहल छी हम

कखनो हँसलौँ कखनो कानलौँ सब रंग मे रंगि
भ' नै जाऊँ असफल तेँ बड डरि रहल छी हम

कोना बताएब खूनक एक एक बूँदक रहस्य
खूनक प्यासल बड छै तेँ हहरि रहल छी हम

नेह सगरो भेटि रहल छै खुले आम बजार मे
शीशा सन टूटल दिल जोड़ि तरि रहल छी हम

आइ देखलौँ दुनियाँ हम अपन खुलल आँखि सँ
" अमित " आइ बूझलौँ अनेरे जड़ि रहल छी हम

वर्ण-19
अमित मिश्र

गजल



डहकल करेज जड़ल करेज और जड़ाएब कोना
बीन डोरक पतंग अहाँ कहू और उड़ाएब कोना

जीवनक पर्दा पर कतेक नव नव नाटक खेललौँ
जखन अन्हार भेल रंगमंच रचना रचाएब कोना

आँखिक सामने उजड़ि गेल बसल बसाएल दुनियाँ
आब भटकल बाट पर प्रेम नगर बसाएब कोना

की सही केलौँ आ की गलत केलौँ किछ नै जानि हम पेलौँ
जानै छी एत' बड भीड़ छै नैन सँ नोरो बहाएब कोना

खुशी सँ काटू जीवन खसैत पड़ैत काटि लेब हमहूँ
"अमित" आजुक राति बड भारी राति इ बीताएब कोना

वर्ण-21
अमित मिश्र

गजल

आइ हमर एकटा दोस्त कए वियाह अछि हुनका वियाहक ढेर रास शुभकामना आ बधाइ एहि गजलक संग ।

नव चान बैसल छै हमर कोहबर मे
सुन्नर मुँह नुकेने ओ अपन आँचर मे

एक कोण पर बैसल ओ लाले लाल लागै
ओ चुप छथि मुदा गाबै छी हम भीतर मे

नहूयेँ उठल घोघ मोन आनंदित भेल
जागल अथाह प्रेम मात्र एक नजर मे

नै मरलौँ नै जीलौँ बीचे मे रहि गेलौँ हम
पीब हुनकर स्पर्श सन मीठ जहर मे

सबदिन चान आबैए सजैए कोहबर
"अमित" आइ मागै छी जा ओ प्रेम नगर मे

वर्ण-16
अमित मिश्र

गजल



उठलै करेजा मे दरदिया हो राम
बदलल पिया के जे नजरिया हो राम

डूबा क' नेहक ताल मे संगे संग
लेलक बदलि अपने डगरिया हो राम

मधुमास लागै आब सौतिन हरजाइ
बेचैन केलक बड अन्हरिया हो राम

छै फूल पसरल सेज काटै सब अंग
गरमी द' रहलै यै चदरिया हो राम

कोना क' सम्हारब समझ मे नै ऐल
बड "अमित" तड़पाबै बदरिया हो राम

2212-2212-2221
बहरे- सरीअ

अमित मिश्र

गजल





सदिखन अहीँ धेआन मे रहलौँ हमर
कखनो अहाँ धेआन मे रमलौँ हमर


शोणित अपन देलौँ जड़ा लिखलौँ गजल
की पाँति एको प्रेम मे रचलौँ हमर

नै थाह भेटल कोन घर छै प्रेम यै
कहने छलौँ जे झूठ सन कहलौँ हमर

छी कल्पना मे रूप फोटो छापने
की दिल सँ एक्को बेर मन गमलौँ हमर

छी ठेठ हम भाषा हमर बूझलौँ कहू
की "अमित" नेहक भाव के पढ़लौँ हमर

{मुस्तफइलुन
2212 तीन बेर सब पाँति मे}
बहरे-रजज

अमित मिश्र

गजल


नैनक छुरी नै चलाबू यै सजनियाँ
कोना कऽ जीयब बताबू यै सजनियाँ

नै चोरि केलौं किया डरबै हम-अहाँ
सुनतै जमाना सुनाबू यै सजनियाँ

छी हम पियासल अहाँ प्रेमक धार छी
आँजुर सँ हमरा पियाबू यै सजनियाँ

बेथा करेजक किया नै सुनलौं अहाँ
हमरा सँ नेहा लगाबू यै सजनियाँ

छटपट करै प्राण तकियो एम्हर अहाँ
"ओम"क करेजा जुडाबू यै सजनियाँ
बहरे-सगीर
मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ

गजल


जियबा के लेल आब सांस नहि छै बांकी ।२।
अहांसँ मिलन के कोनो आश नहि छै बांकी ।

मधुर मिलन के जे आश छल सेहो रहल अधुरा ।२।
जीनगी जियबा में आब किछू खास नहि छै बांकी ।

सपना जे सजल रहय सब जरीक छाउर भ गेल ।२।
जग में हमर अस्तित्व के होब नाश नहि छै बांकी ।

खुशी आ उमंग के सब गाछ में पतझड भ गेल ।२।
जीनगी में आब वसन्तक कोनो मास नहि छै बांकी ।

रचि-रचि क बाग सजेलौं बहार केरे आश में ।२।
कली त खिलल मुदा फुल में सुवास नहि छै बांकी ।

अनहरीया भेल हृदय सदैब अनहारे रहिगेल ।२।
आत्माके दीप में आब प्रकाश नहि छै बांकी ।

सदा के लेल मेटा लिअ हमर नाम अपन दिलसँ ।२।
अहाँ लेल अही धरती पर हमर लास नहि छै बांकी ।
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रचित तिथि - २० अप्रिल २०१२
पहिलबेर प्रकाशित : २० अप्रिल २०१२ (फेसबुक)
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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

गजल



हमरा बिसैइर प्रीतम अहाँ जाएब कतय
एहन प्रगाढ़ प्रेम स्नेह अहाँ पाएब कतय

टुईट नै सकैय प्रीतम साँच प्रेमक बन्हन
चिर प्रेमक बन्हन तोड़ी अहाँ जाएब कतय

बिसैइर केर हमरा दिल लगाएब कतय
छोड़ी कें एसगर हमरा अहाँ जाएब कतय

अहाँक करेजक धड़कन में हम धड्कैत छि
कहू दिल से धड़कन निकाली जाएब कतय

"प्रभात"करेज में पसरल अछि हमर माया
अहाँक छाया हम छि छाया छोड़ी जाएब कतय
................वर्ण:-१८................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल




दिल के दर्द दिल में दबौने नैयन में नोर नुकौने छि
के जानत हमर दिल के ब्यथा मुश्कैत ठोर देखौने छि

वेदना कियो कोना देखत चमकैत चेहरा कें भीतर
प्रियम्बदा केर एकटा राज हम बड जोर दबौने छि

वेकल अछ मोन धधकैत आईग में जरैत करेज
अशांत मोन भीतर मधुकर भावक शोर मचौने छि

तिरोहित भगेल अछि जीवनक उत्कर्ष केर संगम
मधुर मिलन कें अनुपम राग सं भोर गमकौने छि

आएल अमावस खत्म भेल ख़ुशी केर अनमोल पल
"प्रभात" इआदके बाती नोरक तेल सं ईजोर कौने छि

.......................वर्ण-२१...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

रुबाइ






फाटल करेज तँ सिबहे पड़त हमरा
आब केनाहुतो जिबहे पड़त हमरा
अहाँ तँ भने करैत रहब रंग-रभस
ई जहर सन नोर पिबहे पड़त हमरा

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

रुबाइ





सत्तर टा मूस खा बिलाइ आबि गेल
अपन पुण्यक गीत तँ सौंसे गाबि गेल
पहीरि लेलक पाग लगा लेलक ठोप
फकसियार जकाँ सगरो मूँह बाबि गेल

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

गजल



एकटा बात कहू सजनी जौं हम नै रहब तं अहाँ रहब कोना
छोड़ी चलिजाएब जौं परदेश विरह कें दुःख अहाँ सहब कोना

पल पल हर पल हम रहैत छि प्रिया अहाँक संग सदिखन
हमर रूचि सं श्रृंगार करैत छि हमरा बिनु अहाँ सजब कोना

हमरा सँ सजनी अहाँ नुका कS नहि रखने छि दिल में राज कोनो
किछु बात जे हमही जानैत छि लाज सं ककरो अहाँ कहब कोना

मधुर मिलन लेल जी तरसत पिया पिया अहाँक मोन कहत
नैना सँ अहाँक नीर बहत तडपी तडपी अहाँ सम्हरब कोना

श्रृंगार बहत नोरक धार सँ ह्रिदय तडपत विछोडक पीड़ा सँ
भूख पियास नीन सभ त्यागी कें "प्रभातक"बाट अहाँ जोहब कोना
..............वर्ण-२५......................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

गजल

पसरल छै शोणित सगरो बाटपर
घर-आँगन-बाड़ी-झाड़ी घाटपर


हम ठाढ़े रहि गेलहुँ बिनु दामकेँ
देखू बड़का अजगुत ऐ हाटपर


बाबा बनि चूसू सभहँक खून आ
धरमोकेँ छोड़ू बिच्चे बाटपर


कागतपर बनलै हस्पीटल सुनू
सौंसे रोगी सूतल छै खाटपर


भीजल आँचर तहिये गेलै सुखा
जहिया बैसल कौआ ऐ टाटपर



दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ

गजल

उठलै करेजामे दरदिया हो राम
भेलै पिया जुल्मी बहरिया हो राम

कुक कोइलीकें सुनि हिया सिहरल हमर
आँखिसँ बहे नोरक टघरिया हो राम 

साउन बितल जाए  सुहावन मन सुखल
एलै पियाकेँ  नै कहरिया हो राम

जरलै हमर  जीवन बिना प्रेमक आगि
लागल हमर सुखमे वदरिया हो राम

जीवन मनुक बनलै बिना तेलक दीप 
कोना जरत  मोनक  बिजुरिया हो राम

(बहरे सरीअ, मात्रा क्रम  - २२१२-२२१२-२२२१)

@ जगदानन्द झा ‘मनु’

गजल

हम अहाँ सँ मधुर मिलन के, सपना देखैत रहलौं ||
जखन अहाँ सँ भेंट होयत, की कहब सोचैत रहलौं ||


नहिं बूझल छल प्रेमक भाषा, परिभाषा की करू अब.?
नेहक पाती पर ओहिना किछु लिखैत - कटैत रहलौं ||


प्रेमक चन्दन, मोनक भीतर, गमकल - भाँग बनल,
जकर नशा हम मोने - मोने, पीबैत - बह्कैत रहलौं ||


मोनक मधुबन में, शैफाली, लुधकल प्रेमक फूल सँ,
जेहि के तेज सुगंधी में हम, रचल - गमकैत रहलौं ||


दीपक बनिकय इन्तिज़ार जे केलौं , से अब कहू कोना ?
घायल बनिकय कोना प्रेम में, मरैत - जीवैत रहलौं ||


आबि गेलों जे अहाँ आइ अब नहिं कोनो संताप रहल,
बिसरि गेलौं ओ दुःख जे पहिने भोगैत - सहैत रहलौं ||

रचनाकार - अभय दीपराज

रविवार, 15 अप्रैल 2012

गजल





राईत दिन हम अहींक सुरता पिया कएने छि
दूर रहिक हमरा सं हमरा किया सतएने छि

कमला कोशी लेलक उफान मारैय हमर जान
बनी कें अन्जान पिया हमर जिया तरसएने छि

प्रेम परिणय आलिंगन लेल जी हमर तरसैय
प्रेम मिलन ओ मधुर इआद सं हिया जुडएने छि

दिन गनैत बितैय दिन कोना जियव अहाँ विन
दिल के दिया में नोरक तेल सं दिया जरएने छि

सजी देखैछि ऐना सावन भादव बरसैय नैना
अहाँ विन जागी जागी "प्रभात"रतिया वितएने छि
................वर्ण-१९..................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल



चन्दन कें गाछ पर बसेरा होए छै सांप कें
जेना कान्हा पर बौआ सबारी होए छै बाप कें

बड दुःख उठा बाप बौआ के पैघ बनाबै छै
चोट लागैछै बौआ कें दर्द होए छै बाप कें

प्रेम स्नेह माया ममताक पात्र थिक संतान
सैतान छै संतान भान कहाँ होए छै बाप कें

काहि काटी कें बाप बेट्टा पर जीन्गी लुट्बैय
आला आफिसर भS कS बेट्टा नै होए छै बाप कें

सांप कें कतबो दूध पियाबू डैस लै छै सांप
बाप मागै छै भीख बेट्टा कहाँ होए छै बाप कें
..............वर्ण:-१७ .................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

गजल

बाल गजल


डरकडोरि मे झुनझुना बड मीठ बाजै छै
जुता मे लागल पिपहू पीँ पीँ राग सुनाबै छै

तीन टंगा गुरकुन्ना धेधै बौआ घूमै अंगना
बकरी के बच्चा देखिते कूदि कूदि क' नाचै छै

भालू वला नाच देखाबै बौआ के दलान पर
दू टाँग पर नाचल भालू बौओ नाचि हँसै छै

भरि कटोरी दूध पिबै लेए ढंग ध' कानै छै
जखन पूछौँ नाम त' माएक नाम बताबै छै

नाचैत रहैए सब ललना एहि संसार मे
बोआ के हँसी देख "अमित" कलम चलाबै छै

वर्ण-17
अमित मिश्र

गजल

बेचि खेलक इमानो बजार मे
नाचि रहलै इ दुनियाँ अन्हार मे

के अपन आब छथि एत से कहू
नेह सबटा त बेचल हजार मे

भोर किछ राति किछ भेष सब घरै
के असल छै इ लोकक पथार मे

भाइ नै भाइ के रहल आब यौ
लोक चुटकी ल' रहलै दरार मे

बेचि एलै जखन रोटी एक क'र
"अमित" नै देख आशक सचार मे

मुजाइफ
212-212-212-12

अमित मिश्र

गजल

अनचिन्हार आखर के जन्मदिनक हार्दिक शुभकामना संग इ गजल समर्पित

अ-आ सँ सिखलौँ आखर जोड़ि गजल बनेनाइ
जेना कागजक नाह आ फूल कमल बनेनाइ

मतला रदीफ काफिया कसीदा शेर आ बहर
धुन सँ साजि क' रंगबिरही महल बनेनाइ

प्रेमिकाक आँचर सँ प्रेमक पाठ आ प्रेमालाप
कुहरैत करेजक दर्द के चंचल बनेनाइ

दिन के राति राति के दिन साँझ-भोर सँ बदलि
मोनक भाव के अनका लेल सरल बनेनाइ

जन्मदिनक ढेर रास बधाइ आ-आ के हमर
"अमित" अ-आ गंगा शेर के गंगाजल बनेनाइ

वर्ण-18
अमित मिश्र

गजल

बाल गजल


भोरे-भोरे मुर्गा बाजै छै
सोना बौआ के उठाबै छै

नबकी बाछी दूध देतै
तीरो कक्का दूध दूहै छै

माँ देलनि चुसनि भरि
गुटुर-गुटुर पीबै छै

दूये दाँत के हँसै बौआ
आ हपकुनियाँ काटै छै

भरल कठौत पानि मे
बौआ नहाइ छै कूदै छै

पाउडर काजर ठोप्पा
नव कपड़ा चमकै छै

हाथी घोड़ा आ झुनझुना
"अमित" बौआ बजबै छै



वर्ण-9

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल



बौआ एहिठाम कानै छै
माँ जलखइ बनबै छै

बाबा आनलनि टिकुला
बाबी चटनी बनबै छै

कक्का लगाबै छथि सानी
काकीयो अंगना नीपै छै

बलहा बाली पानि भरै
जुगेसरो चेरा फारै छै

पापा छथि परदेश मे
ट्रिन-ट्रिन फोन बाजै छै

दीदी पढ़' गेल इस्कुल
सोनू भैया खेत जोतै छै

सब लागल छै काज मे
तेँ "अमित" बौआ कानै छै

वर्ण-9

अमित मिश्र

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

गजल



बाल-गजल-७

मस्जिद जखने परल अजान
कोइली ठनलक पराती गान

कौआ डकलक खेत खरिहान
बगुला खत्ता बिच करय स्नान

गर-गर दुध दुहैछ बथान
टक-टक पड़रू लगौने ध्यान

बाबा छथि बाड़ी बान्हथि मचान
बाबी अँगना मेँ लगाबथि पान

टुह-टुह लाल पूब असमान
'चंदन'जलखै मे दूध मखान

-----वर्ण-१२-----

गजल


बाल-गजल-६

नवका कुर्ती नवके सलवार
पहिर कय बुच्ची भेल तैयार

ललका फीताक गुहलक जुट्टी
बाजे रुनझुन पायल झन्कार

हाथक बाला खन-खन-खनके
टम-टम चढि के गेल बजार

ढोलक-पिपही आ तमाशा-नाच
सूनल देखल हरख अपार

बाबाक हाथ पकड़ि कए बुच्ची
प्रमुदित घुमय हाट-बजार


-----वर्ण-१२-----

गजल


गजल-२८

लगै अछि लाल अहाँकेर गाल जहिना सिनुरिया आम

अहाँ केर चान सन मुखरा देखि चानो बनल गुलाम

केश कारी घटा घनघोर अमावस राति सन लागय

नैन काजर सजल चमकल बिजुरी के छुटल घाम

जएह बोली अहाँक ठोर केर चुमि कय बहराइछ

महुआ गाछ पर कोइली सैह बाजल बनल सूनाम

डेग राखल जत' धरती माटि बनिगेल ओत' चानन

रुनझुन पजेब-झंकार सँ अँगना बनल सुरधाम

कसमस जुआनी देख सुधिबुधि हमर हेरायल

पिबै लेल नेहरस ब्याकुल भमरा भऽगेल बदनाम

"चंदन"पथिक प्यासल प्रेम केर बाट पर बौआइछ

दिऔ ने नेहरस एकरा पिआय बइसा करेजा-धाम


-----वर्ण-२१-----
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों