सोमवार, 2 अप्रैल 2012

गजल


गजल-१९ (१ अप्रैल पर विशेष)

मूरख बड़ा महान ओ'जे अपना के काबिल बुझै छै,
अपन माथक टेटर ठीक्के ककरहु नहि सुझै छै ।

आनक नीको अधलाह ताकब कबिलताइ कहाबे,
अप्पन अधलाहो केर जग मे सबसँ नीक बुझै छै ।

छह-पाँच नहि किछुओ बुझे नहि मोने कलछप्पन,
ऊँच-नीच के भेद ने जाने मूर्ख सबके एक बुझै छै ।

छल-प्रपंच आ राग-द्वेष तऽ काबिल केर गहना छी,
चलैत बाट तइँ ओकरे सभ के भिखमंगो लुझै छै ।

पर-उपकारे लीन रहै जे सैह अछि अस्सल ज्ञानी ,
"चंदन" असली ज्ञानी जगमे ओ' जे नहि खूब बुझै छै ।

-----वर्ण-२०-----

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