बुधवार, 20 जून 2012

गजल



गजल-७

आखर-आखर छल छिड़िआयल जोड़ि देलंहु त गजल बनल
अपन कलम केर लाधल चुप्पी तोड़ि देलंहु त गजल बनल

भाव पृष्ठ पर शब्दक अरिपन पाईर रहल छी साँझ-परात
मोनक पट हम गजल रंग सँ ढोरि देलंहु त गजल बनल

गजल-गंग केर घाट गहिंरगर गोंत लगेलौं थाह ने भेटल
मन-प्रवाह दिश लगन नाह के मोड़ि देलंहु त गजल बनल

टीस उठल किछु मोन पड़ल हम काइन क नोरे-नोर भेलंहु
पांइत-पांइत के नोरक पोखरि बोरि देलंहु त गजल बनल

वर्ण-पंखुड़ी शब्द-सुमन सँ पांइतक माला गाईथ रहल हम
शब्द के भावक सरस सरोवरि घोरि देलंहु त गजल बनल

रंग रदीफक सजल काफिया बहरक लय मतला-सँ-मकता
बुइध के परती - उस्सर धरती कोड़ि देलंहु त गजल बनल

छूटल-टूटल-रूसल सभ किछु गजल-बाट पर संगी आखर
"नवल" गजल कहबा पाछा जग छोड़ि देलंहु त गजल बनल

***आखर-२५
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
१९.०६.२०१२)



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