गजल-५५
हम रूकल छी, लेखनी ठमकलअछि
सभ कल्पनाठामे-ठाम दरकल अछि
प्रगतिक पहियाआइ बिच्चे बाट पर
भ्रष्टाचारकओठ लागि अरकल अछि
भोगी भूपति सभधयने बाना योगी के
रोटी प्रजाकेखाय क्रमशः सरकल अछि
ज्ञान-शील, तप-त्यागसंकुचित भेल छै
मुदा संकीर्णसोच सौंसे फलकल अछि
"चंदन"लोककेनिश्चय प्रतिकार चाही
कि फेर अनेरुएमेघ ढनकल अछि ?
---------------वर्ण-१५--------------
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