गजल-५४
द्वेशक धाह सँबेशी स्नेहक छाह छै शीतल
नैनक नोर सँबेशी देहक घाम छै तीतल
देहक खून सँबेशी लोकक मोन छै धीपल
अप्पन सोच सँबेशी आनक सोच छै रीतल
ककरो हाथ सँबेशी ककरो गात छै भीजल
खूनक छाप सँदेखू सगरो बाट छै तीतल
ककरो खाप सँबेशी कत्तहु आम छै बेढ़ल
ककरो सगरजिनगी धार-कात छै बीतल
ककरो बोलसमदाउनक भास छै भरले
गाबय"चंदन" उदासी जग बुझै छै गीतल
-----------वर्ण-१७--------
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