गुरुवार, 27 सितंबर 2012

गजल

गजल-३०

जँ  निकलै  करेजासँ  आखर  चलू गजल कहि दी
कने  मोन  लागै   छमसगर  चलू गजल कहि दी

कतउ  सेंतने  आंखिमे  मधुर सपना  मिलन के
कियो पाड़ि  रखने छै  काजर चलू गजल कहि दी
 
अपन  ह्रदय  जे  गछय  से गप्प मानब उचित छै
मुदा लिय सलाहों जँ  अनकर चलू गजल कहि दी

अहाँ   भीड़मे  छी  मगन  तंइ  अखरत  भने  नै   
जँ बैसल रही  कतउ असगर चलू गजल कहि दी

घृणा  द्वेष  के   छोड़ि  हम   करब  श्रृंगार  नेहसँ 
कियो  हाथमे  लै  जँ  पाथर  चलू गजल कह दी 

सुखे  के सखा  नञि  गजल  छै  सरोवर  दुखो के
"नवल" भेल घातों जँ कसगर चलू गजल कहि दी

बहरे-मुतकारिब (१२२-१२२-१२२-१२२-१२२)   
(तिथि-३०.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

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