अनचिन्हार आखर
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शेर जे सभ दिन शेर रहतै
शुक्रवार, 7 सितंबर 2012
गजल
सुख भरल संसार चाही
दुखक नै अंबार चाही
मोन सदिखन खूब हरखे
बमक नै टंकार चाही
भरल घर मिथलाक ज्ञानसँ
अन्नकेँ भंडार चाही
डोलि अम्बर फूल बरखे
भक्तकेँ झंकार चाही
सभ कियो 'मनु' हँसिक' भेटे
एहने संसार चाही
बहरे रमल, (२१२२-२१२२)
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