गजल
फेर गजलक धार चलतै
खेत परती फार चलतै
शब्दकेँ जे बाण बनतै
भावकेँ तलवार चलतै
पूल जखने मोन जोड़त
नेह भरि पेटार चलतै
देह टूटल पेट भूखल
दर्द कऽ स्वीकार चलतै
बाप देखू हारि गेलै
पूतकेँ अधिकार चलतै
टाट खसलै बाट बनलै
राति कतऽ ओहार चलतै*
राति रानी जागि जेतै
फेर ओ श्रृंगार चलतै
फाइलातुन
2122 दू बेर
बहरे-रमल
* जतऽ सरकार घर तोड़ि सड़क बनबैत अछि ओतऽ ओहि घरक लोक लेल ई शेर अछि ।
फेर गजलक धार चलतै
खेत परती फार चलतै
शब्दकेँ जे बाण बनतै
भावकेँ तलवार चलतै
पूल जखने मोन जोड़त
नेह भरि पेटार चलतै
देह टूटल पेट भूखल
दर्द कऽ स्वीकार चलतै
बाप देखू हारि गेलै
पूतकेँ अधिकार चलतै
टाट खसलै बाट बनलै
राति कतऽ ओहार चलतै*
राति रानी जागि जेतै
फेर ओ श्रृंगार चलतै
फाइलातुन
2122 दू बेर
बहरे-रमल
* जतऽ सरकार घर तोड़ि सड़क बनबैत अछि ओतऽ ओहि घरक लोक लेल ई शेर अछि ।
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