गजल-२१
ई के प्रियतम बनि सपना के
बनि गेल छै पाहुन अंगना के
प्रात भेलय तऽ प्रीतक धुनमे
सुमरय छी रातुक घटना के
कियो तऽ हेतै कतहु तऽ भेटतै
रहि - रहि फुसलाबी अपना के
श्रृंगार केलक जे प्रेम सुधासँ
हमर रचल सभ रचना के
"नवल" एही नगरी ओ भेटती
छी ओगरि कऽ बैसल पटना के
*आखर-१२ (तिथि-२४.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
ई के प्रियतम बनि सपना के
बनि गेल छै पाहुन अंगना के
प्रात भेलय तऽ प्रीतक धुनमे
सुमरय छी रातुक घटना के
कियो तऽ हेतै कतहु तऽ भेटतै
रहि - रहि फुसलाबी अपना के
श्रृंगार केलक जे प्रेम सुधासँ
हमर रचल सभ रचना के
"नवल" एही नगरी ओ भेटती
छी ओगरि कऽ बैसल पटना के
*आखर-१२ (तिथि-२४.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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