अनचिन्हार आखर
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शेर जे सभ दिन शेर रहतै
शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
गजल
रहब आब नै दास बनि हम
अपन नीक इतिहास जनि हम
जखन ठानलहुँ हम अपनपर
समुद्रो लएलहुँ तँ सनि हम
उठा मांथ जतएसँ तकलहुँ
दएलहुँ तँ नक्षत्र गनि हम
हलाहल दुनीयाँक पीने
चलै छी अपन मोन तनि हम
जमल खून मारलक धधरा
लएलहुँ विजय विश्व ठनि हम
(बहरे मुतकारिब)
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