गजल-२६
यादि ककरो मेघ बनि जँ ढनकि जाय छै
सुन्न मोन परमे ठनका ठनकि जाय छै
ओकरा बिसरै के गप्प मोन पड़िते देरी
ई बताह मोन किए आर सनकि जाय छै
एक्के बेरमे जँ चूर भऽ जाएत तऽ निचेन
रहि - रहि कऽ करेज किए चनकि जाय छै
नेह मेघोसँ खसल तैयो बुझलक नै क्यों
जँ सिक्का हाथोसँ छूटय तऽ खनकि जाय छै
उपरागसँ "नवल" आब अकछ भेल छी
अबैत - जाइत बाट सभ फनकि जाय छै
*आखर-१६ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
यादि ककरो मेघ बनि जँ ढनकि जाय छै
सुन्न मोन परमे ठनका ठनकि जाय छै
ओकरा बिसरै के गप्प मोन पड़िते देरी
ई बताह मोन किए आर सनकि जाय छै
एक्के बेरमे जँ चूर भऽ जाएत तऽ निचेन
रहि - रहि कऽ करेज किए चनकि जाय छै
नेह मेघोसँ खसल तैयो बुझलक नै क्यों
जँ सिक्का हाथोसँ छूटय तऽ खनकि जाय छै
उपरागसँ "नवल" आब अकछ भेल छी
अबैत - जाइत बाट सभ फनकि जाय छै
*आखर-१६ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें