गुरुवार, 27 सितंबर 2012

गजल

गजल-२६

यादि  ककरो  मेघ  बनि जँ ढनकि जाय छै
सुन्न  मोन  परमे  ठनका  ठनकि जाय छै 

ओकरा  बिसरै  के  गप्प  मोन  पड़िते देरी
ई  बताह  मोन किए आर  सनकि जाय छै

एक्के बेरमे  जँ  चूर भऽ जाएत तऽ निचेन
रहि - रहि  कऽ करेज  किए चनकि जाय छै

नेह  मेघोसँ  खसल  तैयो  बुझलक नै क्यों
जँ सिक्का हाथोसँ छूटय तऽ खनकि जाय छै

उपरागसँ  "नवल" आब  अकछ  भेल छी
अबैत - जाइत  बाट सभ  फनकि जाय छै

*आखर-१६ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों