गजल-२३
सगरो सह - सह एतेक दुःख भेल छै
घरक कोनटा धेने अऽढ सुख भेल छै
संतोष गिल भऽ गेलय लोभकें लेरसँ
रौदी भावक एलै करेज रुख भेल छै
कर्म करय -नै- करय लक्ष्य चाही मुदा
कर्म-पथसँ कियै सभ विमुख भेल छै
घऽरमे घोघ तर छै स्त्रीगन के नुकौने
छाती चाकर केने सभ पुरुख भेल छै
पोसुआ कुकूरसँ छै अपनैती "नवल"
धरि मनुक्खे के दुश्मन मनुख भेल छै
*आखर-१५ (तिथि-२४.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
सगरो सह - सह एतेक दुःख भेल छै
घरक कोनटा धेने अऽढ सुख भेल छै
संतोष गिल भऽ गेलय लोभकें लेरसँ
रौदी भावक एलै करेज रुख भेल छै
कर्म करय -नै- करय लक्ष्य चाही मुदा
कर्म-पथसँ कियै सभ विमुख भेल छै
घऽरमे घोघ तर छै स्त्रीगन के नुकौने
छाती चाकर केने सभ पुरुख भेल छै
पोसुआ कुकूरसँ छै अपनैती "नवल"
धरि मनुक्खे के दुश्मन मनुख भेल छै
*आखर-१५ (तिथि-२४.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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