बेलगोबना नहि सुनलक गप्प
ओकर माथसँ बेल खसल धप्प
बरखा बुनि ल' क' एलै कारी मेघ
पएर तर पानि करे छप्प छप्प
बोगला भेल देखू कतेक चलाक
एके पएरे करे दिन भरि जप्प
बुढ़िया नानीकेँ दुनू काने हरेलै
चाह पीबे भरि दिनमे दस कप्प
बैस 'मनु' झोँटा छटा ले चुपचाप
नै तँ काटि देतौ कान हजमा खप्प
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)
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