गजल-२५
उठय भाव जँ कोनो करेजा के कोन सँ
ई मोन मिलिए जाय छै ककरो मोन सँ
टाका तऽ छै जरुरी जिनगी के लेल मुदा
कीनल नञि जाय नेह चानीसँ सोन सँ
तरलासँ घीमे आ मसल्ला देलासँ नञि
तीमनमे सुआद तऽ होएत छै नॉन सँ
शहरी सनक चढ़ल एना गामे - गाम
सम्बन्ध टूटि रहल आब बाध - बोन सँ
प्रगति के गति तऽ पराधीन छै "नवल"
सभ टहल - टिकोड़ा कराबै छै जोन सँ
*आखर-१५ (तिथि-२५.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
उठय भाव जँ कोनो करेजा के कोन सँ
ई मोन मिलिए जाय छै ककरो मोन सँ
टाका तऽ छै जरुरी जिनगी के लेल मुदा
कीनल नञि जाय नेह चानीसँ सोन सँ
तरलासँ घीमे आ मसल्ला देलासँ नञि
तीमनमे सुआद तऽ होएत छै नॉन सँ
शहरी सनक चढ़ल एना गामे - गाम
सम्बन्ध टूटि रहल आब बाध - बोन सँ
प्रगति के गति तऽ पराधीन छै "नवल"
सभ टहल - टिकोड़ा कराबै छै जोन सँ
*आखर-१५ (तिथि-२५.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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