गजल-३१
विकारसँ छै भरल दुनिया
लगै झखड़ल झड़ल दुनिया
कतेक निचेन सन पलरल
धनक मदमे पड़ल दुनिया
घृणा सगतरि तते पसरल
धधकि उठलै जड़ल दुनिया
करेजक हाल के पुछतय
सिनेहक बिनु मरल दुनिया
कियो कतबो कहै बुझबै
अपन जिद पर अड़ल दुनिया
कते इनहोर हम करबै
लहास जकाँ ठरल दुनिया
"नवल" रहबै कतौ अनतह
गन्हा रहलै सड़ल दुनिया
बहरे वाफिर (१२११२+१२११२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-१९.०९.२०१२)
विकारसँ छै भरल दुनिया
लगै झखड़ल झड़ल दुनिया
कतेक निचेन सन पलरल
धनक मदमे पड़ल दुनिया
घृणा सगतरि तते पसरल
धधकि उठलै जड़ल दुनिया
करेजक हाल के पुछतय
सिनेहक बिनु मरल दुनिया
कियो कतबो कहै बुझबै
अपन जिद पर अड़ल दुनिया
कते इनहोर हम करबै
लहास जकाँ ठरल दुनिया
"नवल" रहबै कतौ अनतह
गन्हा रहलै सड़ल दुनिया
बहरे वाफिर (१२११२+१२११२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-१९.०९.२०१२)
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