मंगलवार, 11 सितंबर 2012

भोथ हथियार



श्री सुरेन्द्र नाथक कहल मैथिली गजलक संग्रह अछि "गजल हमर हथियार थिक"। ऐ पोथी मे हुनकर अडसठि टा गजल प्रकाशित भेल अछि। ई संग्रह २००८ मे आएल अछि जकर आमुख श्री अजीत आजाद जी लिखने छथि। ऐ पोथी केँ आदि सँ अन्त धरि पढबाक बाद हमर यैह अभिमत अछि जे गजलक व्याकरणक दृष्टिसँ ऐ संग्रह मे अनेको कमी अछि, जाहि सँ बचल जा सकैत छल।

पृष्ठ संख्या १३, ६७ आ ७० परहक गजल मे चारिये टा शेर छै, जखन की कोनो गजल मे कम सँ कम पाँच टा शेर हेबाक चाही। संग्रहक कोनो गजल बहर मे नै अछि। हमर ई स्पष्ट मनतब अछि जे गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे बहरक उल्लेख करबाक चाही आ जँ आजाद गजल कहने छथि तँ इहो स्पष्ट रूपेँ लिखबाक चाही।

ऐ पोथी मे काफियाक गलती भरमार अछि। कतौ कतौ तँ ई बूझना जाइ छै जे गजलकार बिना काफिया आ रदीफक मतलब बूझने गजल कहबा लेल बैस गेल छथि। एकर उदाहरण पृष्ठ १५ परहक गजल पढबा पर भेंट जाइ छै। ई तँ हम एकटा उदाहरण कहि रहल छी। आरो गजल ऐ दोख सँ प्रभावित छै, जतय काफियाक नियमक धज्जी उडा देल गेल अछि। जेना पृष्ठ १८, १९, २०, २१, २७, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३९, ४०, ४१, ४३, ४४, ४५, ४६, ४७, ५२, ५३, ५६, ५७, ५८, ६६, ६७, ६८,७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७७, ७९ आदिमे काफिया तकलासँ नै भेंटैत अछि आ ऐ खोजमे मोन अकच्छ भऽ जाइत छै। ओना आनो पृष्ठ काफिया दोखसँ ग्रसित अछि, मुदा ई उदाहरण हम ओइ पृष्ठ सभक देने छी, जतय काफियाक झलकियो तक नै भेंटै छै। मैथिली गजल आइ जाहि सोपान पर चढि चुकल अछि, ओइ हिसाबेँ ऐ तरहक रचना गजलक नामसँ स्वीकृत होइ बला नै अछि। कियाक तँ बिना दुरूस्त काफियाक गजल नै भऽ सकैत अछि। ई संग्रह "अनचिन्हार आखर" युगक शुरूआत भेलाक बाद लिखल गेल अछि, तैँ हमरा ई आस छल जे गजलकार कमसँ कम काफिया आ रदीफक नियमक पालन ठीकसँ केने हेताह, कियाक तँ "अनचिन्हार आखर" जुग मे आब गजलक व्याकरणक सभ नियम चिन्हार भऽ चुकल अछि। मुदा गजलकार काफिया आ रदीफक नियम पालन करबामे पूरा असफल रहलथि। ओना ऐ संग्रहक काफिया दोखकेँ पोथीक आमुख लेखक श्री अजीत आजाद पोथीक आमुखमे दाबल आवाजमे स्वीकार करैत कहै छथि जे कतेको ठाम काफिया "गडबडायल सन" बुझना जाइत अछि। ओना ई अलग गप थिक जे काफिया "गडबडायल सन" नै अपितु पूरा पूरी गडबडायल अछि। फेर श्री आजाद ऐ गलतीकेँ झाँपबा लेल इहो कहैत छथि जे "रचनाकारकेँ अपन सीमासँ बाहर आबि शब्द-व्यापार करबाक चाही"। मुदा गजलक अपन व्याकरण छै, जकर पालन केने बिना रचना गजल नै भऽ कऽ पद्य मात्र रहि जाइत छै। गजल आ कविताक बीचक अंतर जे अंतर छै, से ऐ तरहक तर्कसँ समाप्त नै भऽ जाइ छै। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक अनुपालन नै हेबाक कारणेँ श्री सुरेन्द्र नाथक ई संग्रह गजल संग्रह नै भऽ कऽ एकटा पद्यक संग्रह भऽ कऽ रहि गेल अछि।

संवेदनाक स्तर पर किछु रचना नीक अछि आ जँ गजलकार गजलक व्याकरण पर धेआन देने रहतथिन्ह, तँ नीक गजल लिखि सकैत छलाह। गजलकारक ई पहिलुक मैथिली गजल संग्रह बहुत आस तँ नै जगबैत अछि, मुदा हुनकर संवेदनात्मक प्रतिभा देखैत हम ई आस जरूर करै छी जे ओ गजलक व्याकरणक पालन करैत आगू नीक गजल कहताह आ "गजल हमर हथियार थिक" केँ चरितार्थ करताह। गजल तँ हथियार होइते अछि, मुदा बिनु काफिया, रदीफ आ बहरक नियमक पालन केने रचना गजल नै होइत अछि आ भोथ हथियार भऽ जाइत अछि। पद्यक हथियार पर काफिया आ बहरक सान चढल हुनकर नब गजल-हथियारक प्रतीक्षा रहत।

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