गजल-२४
अन्न लए कियो हकन्न कनै छै
कियो कोठिए-कोठी नुका धरै छै
कपड़ा बिनु कियो घूमै नांगट
ककरो कुकूरो दुशाला ओढै छै
लोकसँ बेसी महल छै ककरो
कियो जिनगी बाटे-घाट कटै छै
छै दिनो कऽ कियो डिबिया लेशने
कियो स्वप्नो डाहि इजोत तकै छै
"नवल" कियो टाका बिनु मरलै
आ ककरो स्वीसमे टाका सड़ै छै
*आखर-१२ (तिथि-२५.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
अन्न लए कियो हकन्न कनै छै
कियो कोठिए-कोठी नुका धरै छै
कपड़ा बिनु कियो घूमै नांगट
ककरो कुकूरो दुशाला ओढै छै
लोकसँ बेसी महल छै ककरो
कियो जिनगी बाटे-घाट कटै छै
छै दिनो कऽ कियो डिबिया लेशने
कियो स्वप्नो डाहि इजोत तकै छै
"नवल" कियो टाका बिनु मरलै
आ ककरो स्वीसमे टाका सड़ै छै
*आखर-१२ (तिथि-२५.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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