रविवार, 16 सितंबर 2012

हजल

हजल-१

ओ कहती चुपतऽ चुप रहू आ बाजूतऽ भूकैत रहू
काग स्वर सुनु हुनक आ कोयली बनि कूकैत रहू

कपडाक मोटरी माथ पर लेने जाऊ धोबाक लेल
भिनसरसँ लएकऽ राति धरि चूल्हाके धूकैत रहू

किछ पाय जे अनलहुं कमा अहाँ घामसँ नहा-नहा
हुनक श्रृंगारके ओरियान में पाय के बूकैत रहू

जूती पहिड़ने हीलके कने चलती थमि-थमिकऽ ओ
संग हुनक डेगके अहूँ चलैत रहू रूकैत रहू

"नवल" हुनक अनुरोध के आदेश बुझि लिय अहाँ
ओ चलती सीना तानिकऽ अहाँ दास बनि झूकैत रहू

*आखर-२० (तिथि-२४.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

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