प्रस्तुत अछि जगदीश प्रसाद मंडल जीक गजल
ठोरक रूप देखैत चलल छै घुरत कोना
मुँहक हँसी सेहो बिसरल छै घुरत कोना
सूर-तान भजैत चलल ककरा की कहतै
छाती केना दलकि रहल छै घुरत कोना
मुँहक कननी केहेन अबै छै कूही भए कऽ
ठोरक रूप जेना बदलल छै घुरत कोना
जिनगी जेकर जेहेन रहै छै घुरछी लेने
छाती तेहने तेकर बनल छै घुरत कोना
हलसि---कलशि कहैत रहै बीच सड़कपर
एेना पारदर्शी बनि बेकल छै घुरत कोना
एक्कभग्गू शीशा रहतै हँसी केहेन एतै यौ
देखि-सूनि हँसि डेग उठल छै घुरत कोना
पालिस लगिते शीशा झल अन्हा र जे बनतै
अन्हा्रेमे जगदीश बढ़ल छै घुरत कोना
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